इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करे। साथ ही इस दिन अपने दिन की शुरुआत सूर्य को अर्घ देने के साथ करें।
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ध्यान रखें की इस दिन पूजा करते समय कोकिला व्रत कथा का पाठ जरूर करें।
यह जन्म से ब्राह्मण लेकिन कर्म से असुर था और अरब के पास यवन देश में रहता था। पुराणों में इसे म्लेच्छों का प्रमुख कहा गया है।
इस कारण से इस व्रत को कोकिला व्रत का नाम दिया गया क्योंकि देवी सती ने कोयल बनकर हजारों वर्षों तक वहाँ तप किया। फिर पार्वती के रूप में उत्पन्न हुई और ऋषियों की आज्ञानुसार आषाढ़ के एक माह से दूसरे माह व्रत रखकर शिवजी का पूजन किया। जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने पार्वती के साथ विवाह कर लिया। अतः यह व्रत कुंवारी कन्याओं के लिए श्रेष्ठ पति प्राप्त करने वाला माना जाने लगा।
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ऐसे में जब देवी सती को इस बात का पता चलता है कि उनके पिता दक्ष ने सभी को बुलाया लेकिन अपनी पुत्री को नहीं। तब सती से यह बात सहन न हो पाई। सती ने शिव से आज्ञा मांगी कि वे भी अपने पिता के यज्ञ में जाना चाहतीं हैं। शिव ने सती से कहा कि बिना बुलाए जाना उचित नहीं होगा, फिर चाहें वह उनके पिता का घर ही क्यों न हो। सती शिव की बात से सहमत नहीं होती हैं और जिद्द करके अपने पिता के यज्ञ में चली जाती हैं।
इस व्रत को करने से दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
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कोकिला व्रत, देवी सती और भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण हिंदू व्रत है। ‘कोकिला’ शब्द भारतीय पक्षी कोयल को दर्शाता है, जो देवी सती के साथ प्रतीकात्मक रूप से जुड़ा हुआ है।
पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें।
भगवान शिव की पूजा के लिए सफेद, लाल फूल, बेलपत्र, भांग, धतूरा, दूर्वा, दीपक, धूप और अष्टगंध का इस्तेमाल जरूर करें।
कोकिला व्रत पति पत्नी के परस्पर सहयोग और समर्पण को दर्शाता है। महिलाएं ये व्रत पति के लंबे साथ और मधुर दांपत्य जीवन की मान्यता से रखती हैं। वहीं कुंवारी कन्याएं इस व्रत को विधिवत रूप से अच्छा जीवन साथी पाने की कामना से करती हैं।
कोकिला व्रत मुख्य रूप से स्त्रियों द्वारा रखा जाता है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य सौभाग्य में वृद्धि प्राप्त click here करना और दांपत्य जीवन के सुख को पाना है। विवाहित स्त्रियां और कुंवारी कन्याएं दोनों ही इस व्रत को करती हैं। कोकिला व्रत करने से योग्य पति की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है और विवाह शीघ्र होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस व्रत को भी अन्य सभी व्रतों की तरह ही नियमों का पालन करते हुए रखा जाता है।